Department of Hindi
Permanent URI for this collection
Browse
Browsing Department of Hindi by Author "Majumdar, Tanuja"
Now showing 1 - 2 of 2
Results Per Page
Sort Options
Item Kashmir Kendrit Hindi Upnyason Ka Aalochnatmak Adhyayan (1980 2014)Majumdar, Tanujaकश्मीर केन्द्रित हिंदी उपन्यासों का आलोचनात्मक अध्ययन (1980-2014)’ शोधकार्य में सन् 1980 से सन् 2014 के बीच प्रकाशित चन्द्रकान्ता के उपन्यास ‘ऐलान गली जिंदा है’, ‘यहाँ वितस्ता बहती है’, ‘कथा सतीसर’, क्षमा कौल के उपन्यास ‘दर्दपुर’, संजना कौल के उपन्यास ‘पाषाण युग’, पद्मा सचदेव के उपन्यास ‘नौशीन’, मीरा कांत के उपन्यास ‘एक कोई था कहीं नहीं-सा’, मनीषा कुलश्रेष्ठ के उपन्यास ‘शिगाफ़’, मधु कांकरिया के उपन्यास ‘सूखते चिनार’, जयश्री राय के उपन्यास ‘इक़बाल’ और मनमोहन सहगल के उपन्यास ‘नरमेध’ के माध्यम से कश्मीरी जीवन और समस्याओं को समझने का प्रयास किया गया है। कश्मीर केन्द्रित हिंदी उपन्यास कश्मीर के इतिहास, राजनीति, साझी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत, हिंसा, आतंक, कश्मीरियों के आपसी संबंध, उसमें होनेवाला बदलाव, अस्मिता संबंधी प्रश्नों, कश्मीरी स्त्रियों की स्थिति और विस्थापन की त्रासदी को अपनी कथावस्तु में समेटे हुए हैं। उपन्यास केवल हिंसा-आतंक या राजनैतिक निर्णयों से उत्पन्न समस्यायों को ही नहीं दिखाते बल्कि आम कश्मीरी जीवन की जद्दोजहद, उसकी विसंगतियों और रूढ़ियों को भी सामने लाते हैं। उपन्यासों में एक ओर जहाँ भविष्य के प्रति चिंता हैं तो सब बेहतर होने की उम्मीद भी है। यह उपन्यास कश्मीर-समस्या और कारणों का विश्लेष्ण करने के साथ संभावित समाधान भी बताते हैं। उपन्यासों में कश्मीरी-समाज की संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा, लोक गीत, लोक कथाओं और लोक-जीवन की प्रस्तुति द्वारा स्थानीयता को बनाए रखने का प्रयास भी किया गया है। उपन्यासों में व्यक्ति मन और जीवन की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नवीन शिल्पगत प्रयोग भी देखने मिलते हैं, जैसे ‘फेसबुक चैट’, ‘ब्लॉग’, मैसेज’ आदि। दरअसल इन उपन्यासों में कश्मीरी जीवन को सम्पूर्णता में प्रस्तुत किया गया है जिसके तहत यह उपन्यास उन कश्मीरी जनों की आवाज़ बनते हैं जो हिंसा नहीं अमन चाहता है, युद्ध नहीं रोजगार चाहता है। वह एक ऐसा वर्तमान और भविष्य चाहता है जहाँ उसे और उसकी आगामी पीढ़ी को मौत का भय न हो, अपनी मातृभूमि से विस्थापित होने का दंश न सहना पड़े। आम जीवन की जटिलता, अंतर्द्वंद और पीड़ा को अभिव्यक्त करते इन उपन्यासों में कश्मीर की राजनीति के बरक्स जनसामान्य के जीवन को सामने लाने का प्रयास किया गया है।Item Krishna Sobti Tatha Indira Goswami Ke Upanyason Mein Stree VimarshMajumdar, Tanujaप्रस्तुत शोध प्रबंध ‘कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों में स्त्री विमर्श’ में हिन्दी-असमिया लेखिकाओं (कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी) के उपन्यासों में मुखरित स्त्री विमर्श को अध्ययन के केंद्र में रखा गया है। स्त्री विमर्श, स्त्री चेतना के प्रसार का आख्यान है जिसमें स्त्रियों के लिए एक समान राजनैतिक, शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों की बात की जाती है। स्त्रीविमर्श किसी भी लिंग विशेष के वर्चस्ववाद का विरोध करने के साथ ही लिंगों की परस्पर समानता का आह्वान करता है। स्त्री विमर्श के साथ ही स्त्री लेखन के माध्यम से स्त्री चेतना का व्यापक स्तर पर प्रसार संभव हुआ। साठवें दशक से भारतीय साहित्य में महिला रचनाकारों ने क्रमशः अपनी सुदृढ़ जगह बनाई जिसमें हिन्दी साहित्यकार कृष्णा सोबती तथा असमिया साहित्यकार इंदिरा गोस्वामी महत्वपूर्ण नाम हैं। दोनों ही साहित्यकार स्त्रियों के संघर्ष, उसकी वेदना, अंतर्द्वंद्व को लिपिबद्ध करने के साथ ही समाज के पीड़ित अन्य वर्ग को भी अपने लेखन के केंद्र में रखती हैं। विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक मुद्दों को समाहित करता कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी का लेखन युग जीवन और मानव जीवन के सभी पक्षों को समेटे हुए है। दोनों साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के द्वारा एक बहुभाषीय राष्ट्र की दो भाषाओं हिंदी तथा असमिया के माध्यम से दो भिन्न भू-भागों पश्चिमोत्तर और पूर्वोत्तर के समाज में स्त्री की स्थिति, उसके संघर्ष का चित्रण करते हुए स्त्री चेतना के स्वर को मुखर किया है। कृष्णा सोबती के स्त्री पात्र संयुक्त परिवार की जटिल संरचना में स्त्री के समान अधिकार के लिए संघर्ष करते हैं वहीं इंदिरा गोस्वामी की नायिकाएं स्त्री द्वेषी धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध अपना प्रतिरोध दर्ज करती हैं। कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी इस तथ्य के प्रति सजग हैं कि समाज तथा परिवार की जटिल संरचना में स्त्री और पुरुष को मात्र शोषित और शोषक की तरह विभाजित नहीं किया जा सकता। अतः दोनों साहित्यकार स्त्री और पुरुष को एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में खड़ा करने के बजाय परिस्थितियों और घटनाओं को निष्पक्ष दृष्टि से देखते हुए स्त्री अस्मिता के संकट को प्रस्तुत करती हैं तथा इसके साथ ही स्त्री सशक्तिकरण का पथ भी विस्तृत करती हैं। कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों में शोषण के मूल को समझने के लिए जाति, वर्ग तथा लिंग आधारित शोषण का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। दोनों साहित्यकारों के उपन्यासों में चित्रित स्त्री जीवन के आधार पर भारत के दो भिन्न भू-भागों पंजाब तथा असम में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक आधार पर स्त्री के संघर्ष को समझा जा सकता है।