Krishna Sobti Tatha Indira Goswami Ke Upanyason Mein Stree Vimarsh

dc.contributor.advisorMajumdar, Tanuja
dc.creator.researcherMishra, Pooja
dc.date.accessioned2024-07-29T07:35:30Z
dc.date.available2024-07-29T07:35:30Z
dc.description.abstractप्रस्तुत शोध प्रबंध ‘कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों में स्त्री विमर्श’ में हिन्दी-असमिया लेखिकाओं (कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी) के उपन्यासों में मुखरित स्त्री विमर्श को अध्ययन के केंद्र में रखा गया है। स्त्री विमर्श, स्त्री चेतना के प्रसार का आख्यान है जिसमें स्त्रियों के लिए एक समान राजनैतिक, शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों की बात की जाती है। स्त्रीविमर्श किसी भी लिंग विशेष के वर्चस्ववाद का विरोध करने के साथ ही लिंगों की परस्पर समानता का आह्वान करता है। स्त्री विमर्श के साथ ही स्त्री लेखन के माध्यम से स्त्री चेतना का व्यापक स्तर पर प्रसार संभव हुआ। साठवें दशक से भारतीय साहित्य में महिला रचनाकारों ने क्रमशः अपनी सुदृढ़ जगह बनाई जिसमें हिन्दी साहित्यकार कृष्णा सोबती तथा असमिया साहित्यकार इंदिरा गोस्वामी महत्वपूर्ण नाम हैं। दोनों ही साहित्यकार स्त्रियों के संघर्ष, उसकी वेदना, अंतर्द्वंद्व को लिपिबद्ध करने के साथ ही समाज के पीड़ित अन्य वर्ग को भी अपने लेखन के केंद्र में रखती हैं। विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक मुद्दों को समाहित करता कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी का लेखन युग जीवन और मानव जीवन के सभी पक्षों को समेटे हुए है। दोनों साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के द्वारा एक बहुभाषीय राष्ट्र की दो भाषाओं हिंदी तथा असमिया के माध्यम से दो भिन्न भू-भागों पश्चिमोत्तर और पूर्वोत्तर के समाज में स्त्री की स्थिति, उसके संघर्ष का चित्रण करते हुए स्त्री चेतना के स्वर को मुखर किया है। कृष्णा सोबती के स्त्री पात्र संयुक्त परिवार की जटिल संरचना में स्त्री के समान अधिकार के लिए संघर्ष करते हैं वहीं इंदिरा गोस्वामी की नायिकाएं स्त्री द्वेषी धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध अपना प्रतिरोध दर्ज करती हैं। कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी इस तथ्य के प्रति सजग हैं कि समाज तथा परिवार की जटिल संरचना में स्त्री और पुरुष को मात्र शोषित और शोषक की तरह विभाजित नहीं किया जा सकता। अतः दोनों साहित्यकार स्त्री और पुरुष को एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में खड़ा करने के बजाय परिस्थितियों और घटनाओं को निष्पक्ष दृष्टि से देखते हुए स्त्री अस्मिता के संकट को प्रस्तुत करती हैं तथा इसके साथ ही स्त्री सशक्तिकरण का पथ भी विस्तृत करती हैं। कृष्णा सोबती तथा इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों में शोषण के मूल को समझने के लिए जाति, वर्ग तथा लिंग आधारित शोषण का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। दोनों साहित्यकारों के उपन्यासों में चित्रित स्त्री जीवन के आधार पर भारत के दो भिन्न भू-भागों पंजाब तथा असम में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक आधार पर स्त्री के संघर्ष को समझा जा सकता है।en_US
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dc.identifier.urihttps://www.presiuniv.ac.inen_US
dc.identifier.urihttp://www.presiuniv.ndl.iitkgp.ac.in/handle/123456789/2429
dc.language.isohinen_US
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dc.sourcePresidency Universityen_US
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dc.subjectस्त्री अस्मिताen_US
dc.subjectस्त्री चेतनाen_US
dc.subjectवैधव्य समस्याen_US
dc.subjectस्त्री संघर्षen_US
dc.subjectधार्मिक कुरीतियाँen_US
dc.subjectस्त्री दृष्टिen_US
dc.subjectस्त्री भाषाen_US
dc.titleKrishna Sobti Tatha Indira Goswami Ke Upanyason Mein Stree Vimarshen_US
dc.typetexten_US
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