Bhasha aur Hindi Aalochana: Antarsambandh

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‘भाषा और हिन्दी आलोचना : अंतर्संबंध’ शीर्षक शोध-प्रबंध में हिन्दी आलोचना में भाषा-संबंधी चिंतन के सूत्रों की खोज की गई है तथा हिन्दी आलोचना की अपनी भाषिक संरचना का भी अध्ययन किया गया है। हिन्दी आलोचना की विधिवत शुरुआत भारतेंदु युग से मानें तो इसका इतिहास डेढ़ सौ वर्षों से कुछ अधिक का ठहरता है । इस समयावधि में हिन्दी साहित्य वाङ्मय में कई आलोचक हुए हैं और हैं। उन सबका अध्ययन एक शोध-प्रबंध में सम्भव नहीं अतः अध्ययन की सुविधा के लिए शोध-कार्य को हिन्दी के चार प्रमुख आलोचकों रामचंद्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा तथा नामवर सिंह की आलोचना-कृतियों पर केंद्रित रखा गया है। आधुनिक हिन्दी आलोचना में भाषा-संबंधी चिंतन की स्थिति क्या है, आलोचकों ने साहित्य के सम्पूर्ण मूल्यांकन में उसके भाषिक पक्ष को कितना महत्व दिया है तथा भाषा-विश्लेषण के क्या उपकरण हिन्दी आलोचना ने अपनाये व विकसित किए हैं, इन प्रश्नों पर यह शोध-कार्य केंद्रित है । भाषा का वैचारिकी और चिंतन-प्रक्रिया से गहरा संबंध है । आलोचना विचारप्रधान साहित्यिक कर्म है और भाषा विचार को अभिव्यक्त करने से पहले विचार को आकार देने का काम करती है, अतः भाषा से आलोचना का संबंध केवल माध्यम और मूल्यांकन की कसौटी का इकहरा संबंध नहीं है । आलोचक की अपनी भाषा रचना और रचना को सम्भव करने वाली स्थितियों को परखने की उसकी दृष्टि को नियंत्रित करती है । इस शोध-कार्य के द्वारा यह निष्कर्ष सामने आया है कि हिंदी आलोचना में भाषा के महत्वपूर्ण को उस हद तक महत्व देने की परम्परा है जितने से रचना की सामाजिकता और कलात्मकता का विश्लेषण बाधित नहीं होता बल्कि सही दिशा में प्रशस्त होता है ।
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Keywords
Language, Criticism, Aesthetic Sense, Thought, Art
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